स्वतन्त्रता के उपरान्त देश की साढे पाँच सौ से अधिक रियासतों को सरदार वल्लभभाई पटेल ने बातचीत, समझौते अथवा सैनिक कार्रवाई के द्वारा भारत मेंशामिल कर लिया था। उनकी रणनीति पर चला गया होता तो कश्मीर की समस्या भी हल हो गयी होती। सरदार पटेल गोलवलकर गुरुजी की सहायता से कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को भारत में विलय के लिये सहमत भी कर लिया था, किन्तु शेख अब्दुल्ला के व्यामोह में फंसे पं. नेहरू जी ने अपनी हठधर्मिता के आगे किसी की न चलने दी। लार्ड माउण्टबेटन की योजना को आगे बढाते हुए उन्होंने शेख अब्दुल्ला को महाराजा पर दबाव डालकर काश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त करवाया। तब तक कबाइलियों के वेश में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के एक बडे भू-भाग पर अधिकार कर लिया था। पं. नेहरू जी की अदूरदर्शिता के चलते उस विषय को संयुक्त राष्ट्र संघ के हवाले कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर को विवादित क्षेत्र घोषित कर दिया, जो आज तक विवादित ही बना हुआ है। इस ऐतिहासिक तथ्य से हम सभी अवगत हैं।
कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है। इसी कश्मीर में शेख अब्दुल्ला के पोते उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री, और राज्य में उसी कांग्रेस की सरकार है। केन्द्र सरकार शेख अब्दुल्ला के परिवार के प्रति वही नजरिया रख रही है, जो पं. नेहरू जी का था। पूरे देश को चिन्ता है कि केन्द्र की लुज-पुंज सरकार कहीं ऐसा कोई कदम न उठा ले जिससे भविष्य के लिए नयी समस्या बन जाये।
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